अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस दावे के कुछ ही घंटों बाद कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया है कि भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर देगा, भारत ने इस बयान को सख्ती से खारिज कर दिया।
विदेश मंत्रालय (MEA) ने स्पष्ट किया कि “प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच कल कोई टेलीफोनिक बातचीत नहीं हुई” और यह भी दोहराया कि भारत की तेल आयात नीति पूरी तरह भारतीय उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के उद्देश्य से संचालित होती है।
🇺🇸 ट्रंप का दावा: “मोदी ने वादा किया कि भारत अब रूसी तेल नहीं खरीदेगा”
व्हाइट हाउस में एक कार्यक्रम के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत की है, जिसमें मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया कि भारत “रूस से तेल खरीदना बंद कर देगा।”
ट्रंप ने कहा —
“आप यह तुरंत नहीं कर सकते, इसमें थोड़ा समय लगेगा… लेकिन यह प्रक्रिया जल्द ही पूरी हो जाएगी।”
उन्होंने आगे कहा कि “अगर भारत तेल नहीं खरीदेगा, तो रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म करना आसान होगा।”
ट्रंप ने यह भी दावा किया कि उन्होंने मोदी के साथ भारत के रूस से तेल आयात पर चिंता जताई, क्योंकि इससे “राष्ट्रपति पुतिन के युद्ध को परोक्ष रूप से फंडिंग” मिलती है।
ट्रंप ने साथ ही पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा —
“मोदी एक महान व्यक्ति हैं। वह ट्रंप को पसंद करते हैं। भारत एक अविश्वसनीय देश है और मोदी लंबे समय से वहां के नेता हैं।”
🇮🇳 भारत की प्रतिक्रिया: “कल ऐसी कोई बातचीत नहीं हुई”
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने साप्ताहिक प्रेस ब्रीफिंग में ट्रंप के बयान पर जवाब देते हुए कहा —
“मेरी जानकारी के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बीच कल कोई टेलीफोनिक बातचीत नहीं हुई।”
उन्होंने कहा कि भारत की तेल नीति स्पष्ट है और हमेशा राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देती है।
विदेश मंत्रालय ने अपने आधिकारिक बयान में कहा —
- भारत एक महत्वपूर्ण तेल और गैस आयातक देश है।
- हमारी प्राथमिकता हमेशा भारतीय उपभोक्ता के हितों की रक्षा और ऊर्जा आपूर्ति की स्थिरता सुनिश्चित करना रही है।
- भारत की ऊर्जा नीति का लक्ष्य है ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण और स्थिर कीमतें बनाए रखना।
सीधे शब्दों में कहा जाए तो, भारत ने दोहराया है कि उसकी नीतियाँ किसी बाहरी दबाव से नहीं बल्कि घरेलू आवश्यकताओं और रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) से संचालित होती हैं।
⚙️ भारत ने क्यों लिया यह रुख?
1️⃣ उपभोक्ता हित सर्वोपरि
भारत जैसे विशाल देश के लिए ऊर्जा स्थिरता बेहद महत्वपूर्ण है। रूस से अचानक आयात रोकना तेल की कीमतों में उछाल और मुद्रास्फीति को बढ़ा सकता है। इसलिए भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करनी ही होगी।
2️⃣ सस्ते रूसी तेल का लाभ
यूक्रेन युद्ध के बाद रूस ने भारत को डिस्काउंटेड क्रूड ऑयल बेचना शुरू किया, जिससे भारत को भारी आर्थिक फायदा मिला। कई भारतीय रिफाइनरियाँ इसी सस्ते कच्चे तेल पर निर्भर हैं, जिससे देश की ईंधन कीमतें नियंत्रित रहती हैं।
3️⃣ अमेरिका-भारत व्यापारिक तनाव
हाल ही में अमेरिका ने भारत पर 25% टैरिफ लगाया था, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में तनाव बढ़ा है। ऐसे माहौल में ट्रंप का बयान भारत पर दबाव डालने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
4️⃣ कूटनीतिक संतुलन बनाए रखना
भारत ने हमेशा रूस और अमेरिका दोनों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखे हैं। ट्रंप के बयान को खारिज करना भारत की यही नीति दर्शाता है कि वह किसी एक पक्ष के दबाव में नहीं झुकेगा।
5️⃣ रूस की प्रतिक्रिया
रूस ने भी इस पूरे मामले में संयम दिखाया। रूस के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा कि वे भारत के आधिकारिक बयानों का सम्मान करते हैं और तेल व्यापार भारत के हित में है।
रूस के भारत में राजदूत डेनिस अलीपोव ने कहा — “भारत की ऊर्जा नीतियाँ पूरी तरह उसके राष्ट्रीय हितों पर आधारित हैं और हमारी आपूर्ति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए लाभदायक है।”
🌍 वैश्विक संदर्भ में इसका महत्व
यह विवाद केवल तेल या व्यापार का नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन का हिस्सा है।
- अमेरिका रूस को आर्थिक रूप से अलग-थलग करना चाहता है।
- भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर अडिग रहना चाहता है।
- यह घटना दिखाती है कि भारत अब “दबाव झेलने वाला” नहीं बल्कि “निर्णय लेने वाला” राष्ट्र बन चुका है।
🔮 आगे क्या हो सकता है?
- अमेरिका इस दावे के समर्थन में कोई सबूत देने की कोशिश कर सकता है।
- भारत अपने बयान पर कायम रहेगा और नीति में बदलाव की संभावना फिलहाल नहीं है।
- आने वाले हफ्तों में दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता और ऊर्जा सहयोग पर असर पड़ सकता है।
- वैश्विक स्तर पर अन्य देश भी यह देख रहे हैं कि भारत इस दबाव से कैसे निपटता है।
🏁 निष्कर्ष: संप्रभुता और रणनीतिक स्वायत्तता का प्रदर्शन
ट्रंप के बयान और भारत की त्वरित प्रतिक्रिया ने एक बात स्पष्ट कर दी है —
भारत अपनी विदेश नीति और ऊर्जा रणनीति पर किसी बाहरी दबाव को स्वीकार नहीं करेगा।
भारत का जवाब न केवल अमेरिकी दावे का खंडन था, बल्कि एक संदेश भी —
“हम अपनी नीतियाँ वाशिंगटन या मॉस्को की नहीं, बल्कि नई दिल्ली की शर्तों पर तय करते हैं।”
वैश्विक मंच पर भारत का यह आत्मविश्वास बताता है कि वह अब केवल “दुनिया की सबसे बड़ी लोकतंत्र” नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे स्वतंत्र आवाज़ों में से एक है।