अमेरिका और सिंगापुर ने मिलकर भारत की FY25 FDI वृद्धि का एक-तिहाई हिस्सा दिया: RBI जनगणना में खुलासा

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की रफ्तार अब भी मजबूत है — और इस बार इसके सबसे बड़े योगदानकर्ता रहे संयुक्त राज्य अमेरिका और सिंगापुर, जिन्होंने वित्त वर्ष 2025 (FY25) में कुल प्रवाह का एक-तिहाई से अधिक हिस्सा दिया।

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा 29 अक्टूबर 2025 को जारी Foreign Liabilities and Assets (FLA) Census के प्रारंभिक आँकड़ों के अनुसार, FY25 में भारत का कुल FDI इक्विटी मूल्य ₹68,75,931 करोड़ तक पहुँच गया, जो FY24 के ₹61,88,243 करोड़ से 11.1% अधिक है।

यह आँकड़े 45,702 संस्थाओं की रिपोर्ट पर आधारित हैं, जो यह दिखाते हैं कि भारत में वैश्विक निवेश विश्वास लगातार बढ़ रहा है — विशेष रूप से मैन्युफैक्चरिंग, टेक्नोलॉजी और सेवाओं के क्षेत्रों में।

एफडीआई में सबसे आगे कौन? अमेरिका और सिंगापुर की जोड़ी ने बढ़त बनाई

RBI के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि FDI का बड़ा हिस्सा कुछ ही देशों से आ रहा है — जिनमें अमेरिका और सिंगापुर सबसे ऊपर हैं।

FY25 के मुख्य आँकड़े:

देशकुल FDI में हिस्सा (%)अनुमानित मूल्य (₹ करोड़)प्रमुख क्षेत्र
अमेरिका (U.S.)20.0~13,75,186टेक्नोलॉजी, सेवाएँ, विनिर्माण
सिंगापुर14.3~9,84,378फिनटेक, लॉजिस्टिक्स, एशियाई निवेशों का केंद्र
मॉरीशस13.3~9,15,259टैक्स-एफिशिएंट निवेश रूट
यूनाइटेड किंगडम11.2~7,70,144फार्मा, नवीकरणीय ऊर्जा
नीदरलैंड्स9.0~6,18,834केमिकल्स, ऑटोमोबाइल उद्योग

अकेले अमेरिका और सिंगापुर ने कुल FDI का 34.3% हिस्सा दिया, जो भारत की “Make in India” और डिजिटल अर्थव्यवस्था में वैश्विक भरोसे को दर्शाता है।

सेक्टर वाइज तस्वीर: मैन्युफैक्चरिंग फिर से छाई, सर्विस सेक्टर नज़दीक

FDI का सबसे बड़ा आकर्षण बना रहा मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, जिसने कुल निवेश में 48.4% बाजार मूल्य का हिस्सा लिया। यह वृद्धि सरकार की PLI योजनाओं और चीन-प्लस-वन (China+1) रणनीति के चलते आई है।

  • गैर-वित्तीय कंपनियों ने 90.5% FDI अपने नाम किया, जो वास्तविक उत्पादन-आधारित निवेशों का संकेत देता है।
  • अनलिस्टेड कंपनियों ने लगभग 97% हिस्सा प्राप्त किया — जो बताता है कि स्टार्टअप और निजी कंपनियाँ FDI के बड़े खिलाड़ी बन रही हैं।

सेवाएँ क्षेत्र (IT, वित्त, ई-कॉमर्स) में भी मजबूत प्रवाह जारी है, जो भारत की आर्थिक विविधता का आधार बना हुआ है।

अब भारत भी निवेशक बन रहा है — ODI में 17.9% की छलांग

सिर्फ FDI ही नहीं, बल्कि भारत का आउटवर्ड डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (ODI) भी तेजी से बढ़ रहा है। FY25 में भारत का कुल ODI ₹11,66,790 करोड़ तक पहुँच गया — जो पिछले वर्ष की तुलना में 17.9% की वृद्धि है।

मुख्य गंतव्य देश:

  • सिंगापुर – 22.2% (एशिया-प्रशांत निवेशों का केंद्र)
  • अमेरिका – 15.4% (टेक अधिग्रहण, R&D केंद्र)
  • यूनाइटेड किंगडम – 12.8% (फार्मा, सेवाएँ)
  • नीदरलैंड्स – 9.6% (यूरोपीय लॉजिस्टिक्स हब)

यह प्रवृत्ति बताती है कि भारतीय कंपनियाँ अब केवल निवेश प्राप्त नहीं कर रहीं, बल्कि दुनिया भर में अपना विस्तार भी कर रही हैं — जैसे टाटा, इन्फोसिस, और विप्रो जैसी कंपनियाँ।

भारत की निवेश कहानी: FDI बनाम ODI – एक संतुलित बढ़त

  • FDI वृद्धि: 11.1% — मजबूत नीतियों और सुधारों का नतीजा
  • ODI वृद्धि: 17.9% — भारतीय कंपनियों का वैश्विक आत्मविश्वास
  • अनुपात घटकर 5.9 गुना (FY24 में 6.3 गुना था) — यह बताता है कि भारत का निवेश प्रवाह अब दोतरफा हो गया है

इन आंकड़ों के अनुसार, अगर यह रफ्तार बरकरार रही, तो FDI FY26 में GDP में 1–2% तक अतिरिक्त योगदान दे सकता है।

निवेशकों और नीति-निर्माताओं के लिए क्या संकेत हैं?

  • अमेरिका और सिंगापुर से आने वाला पूंजी प्रवाह भारत के टेक, विनिर्माण और हरित ऊर्जा क्षेत्रों को मज़बूत बना रहा है।
  • “चीन-प्लस-वन” रणनीति के चलते भारत वैश्विक सप्लाई चेन में अपनी स्थिति सुदृढ़ कर रहा है।
  • ODI की बढ़त से स्पष्ट है कि भारत अब एक निवेश-दाता राष्ट्र के रूप में उभर रहा है।
  • सरकार को अब शीर्ष देशों पर अत्यधिक निर्भरता घटाकर निवेश विविधीकरण की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे।

निष्कर्ष

RBI की FLA जनगणना यह दर्शाती है कि भारत आज भी वैश्विक निवेशकों की पसंदीदा मंज़िल है।
अमेरिका-सिंगापुर की जोड़ी ने FY25 को FDI के लिए रिकॉर्ड वर्ष बना दिया है।

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का दबदबा और ODI की तेज़ी, दोनों मिलकर भारत की वैश्विक आर्थिक स्थिति को मज़बूत बना रहे हैं। आने वाले बजट में यदि सरकार प्रोत्साहन योजनाओं को बढ़ाती है, तो FY26 में भारत आसानी से $100 बिलियन वार्षिक FDI का लक्ष्य छू सकता है।

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